Monday, 18 March 2013

परबतसर नगर (parbatsar)


भारत में अनेक गाँव, और महानगर विधमान है | वर्तमान में परबतसर नगर पशु मेला के कारण एशिया प्रसिद्द नगर माना जाता है | एस नगर का नाम मानो उसकी प्राक्रतिक स्थिति को देखकर ही रखा गया हो, परबत+सर परबतसर |  पर्बतो और सरो से घिरा परबतसर नगर राजस्थान प्रान्त के नागौर जिले में अपना अनूठा स्थान रखता है |


इतिहास के झरोखे से
          परबतसर के बारे में प्राचीन प्रमाण भी सुरक्षित है | इस नगर की बनावट बाबत कोई निश्चित तिथि नहीं बताई जा सकती | कानूनगो की बहियो व झ्वरों के युद्ध पुरुषो की यादगीरी और शिलालेखो से विदीत होता है की यह नगर 8वी शताब्दी में दहिया वंश के 19वे राजा सालवाह की राजधानी] के रूप में विख्यात था |
             
              प्राचीन दहियो के राज्यो व ठिकानो और जागीरदारों की सूची में क्रम संख्या 1 पर परबतसर या देरावर, अजमेर, सांभर के पास स्वामी सालवाह का उल्लेख है | दहिया राजपूतो का और भी कई जगहों पर राज्य था | जिसमे मारवाड़ में मारोठ (जोधपुर), घटियाल व सावरगढ़ (अजमेर) , हरसोर (जोधपुर) , नै‍‌णवा (बूंदी) , जालोर व सांचौर व बावतरागढ़ (मारवाड़) , जांगलू (बीकानेर), सहील्गढ़ (अफगानिस्तान) , आदि जगहों पर दहियों के राज्य थे |

              दहिया वंश की उत्पति महर्षि दधीचीक वंश के रूप में मानी जाने के ठोस प्रमाण भी उप्ल्ब्थ है | दधीची के अपनी अस्थियों का दान कर देने पर उनके वंशज दधीचीक कहलाये |

              दधीचीक वंश के राजा मेधनाद की पत्नी मासटा से बड़ादानी और वीर बेरीसिंह जन्मा, जिसकी धर्मपत्नी दुन्धा से चच्चदेव उत्पनन हुए | वि.सं. 1056 में वैशाख आखातीज ई. सन 999 की 21 अप्रैल में दहिया वंश के तत्कालीन परबतसर परगने के शासक राणा चच्चदेव दहिया राजा दुआर निम्रित देवालयों में दहिया वंश की कुलदेवी केवाय माता की मूर्ति स्थापित की गई |

              दधीची ऋषि के पुत्र पीपलाद मुनि जिनका पालन दधीची की बहन ने किया | उन्होंने परबतसर के समीप अपनी तपोभूमि बनाई और दुग्धेश्वर महादेव के स्थापना की | इन्ही के नाम से पीपलाद ग्राम हुआ | इनके बाद इनसे जो संतान हुई उनमें से एक वर्ग शक्तिशाली होने पर अपने आपको शासक कहलाने योग्य बना | उक्त पुस्तक में लिखीत दहिया शासक वंश के 24वें  शासक देरावर दूसरा राणा उपाधि से अलंकृत होकर प्रसिद्द हुआ | तब से यह दहिया राजपूत के नाम से पहचाने जाने लगे तथा दूसरा वर्ग पूजा - पाठ, विद्यादान व ब्राहमण व्रती में रहे वो दधीची कहलाये | इस प्रकार वर्तमान में दहिया राजपूत व दाधीच ब्रहामन एक ही महर्षि के वंशज है | केवल कार्यो के अनुसार अलग अलग जाती के रूप में पनपे, जिसकी पुष्टि इतिहास में सहज ही प्राप्त की जा सकती है|

             दहिया वंशज बहुत बहादुर, पराक्रमी, वीर,दानी एवं धार्मिक विचारधारा के धनी थे | इसके 30वे राजा चच्चदेव दहिया ने वि.सं 1056 अपने माता पिता की स्मरति में ग्राम किनसरीया की ऊँची पहाड़ी पर केवाय माता का मंदिर बनवाया, जिसकी पुष्टि इस मंदिर के सभा मंडप में स्थापित शिलालेख से आज भी देखि जा सकती है | इस वंश के 21वें राजा का नाम देरावर था | उसने अपने नाम से परबतसर के पास देरावरगढ़ बनवाया था, जो आज देवडूंगरी के नाम से पहचाना जाता है तथा इसके आस-पास आज भी दहिया वंश निवास करते है |


             कालांतर में देवी-प्रकोप से दहिया वंश के 37वें राजा इनके शासन के अंत होने के निश्चित प्रमाण दहिया वंशज की यादगिरी के कथानुसार प्राप्त होते है, जिससे दहिया के भानेज जगन्नाथसिंहजी मेडतिया, जब मेडता के राजा थे, जब उन्होंने परबतसर परगना को अपने राज्य में विलय कर लिया था तथा बाद मे जोधपुर स्टेट ने मेड़ता स्टेट को अपने शासन में विलय कर लिया | तब परबतसर परगना स्वत; ही जोधपुर स्टेट के अधीन आ गया, जो राजस्थान राज्य निर्माण से पूर्व तक रहा |

3 comments:

  1. डुंगरसिह दहियावत साँथु3 January 2016 at 07:56

    जय कुलदेवी श्री कैवाय माँ

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  2. Hukum Kinsariya ke Mertiya Rathore ke bare me post kare!!

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