परबतसर स्थित किनसरिया का प्राचीन नाम सिणहडीये था | यह
स्थान नागौर जिलान्तर्गत तहसील परबतसर के मुख्यालय से 6 किमी की
दुरी पर उतर-पछिम में स्थित है | लगभग 1007 वर्ष पूर्व अर्थात विक्रम संवत 1056 में
दहिया वंश के तत्कालीन परबतसर के राणा चच्च्देव दहिया द्धारा निर्मित देवालय में
केवाय माता की मूर्ति विधमान है | इस मंदिर की प्रतिष्ठा राणा चच्च्देव दहिया ने
करवाई थी | मनोहरी पर्वतीय अंचल की ऊँची चोटी पर स्थित केवाय माता का मंदिर
युगों-युगों से भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते रहा है | जो भी भक्त ह्दय से माता
के दर्शन की आकांशा रखता है, उसे माँ पहाड़ी पर चढने का संबल प्रदान कर दर्शन देती
है | युगानुकुल भवानी के मंदिर तक पहुँचने
का मार्ग समय-समय पर भक्तजनों से निर्मित करवाया, जिससे सुगमता व सावधानी से वह
दर्शनार्थ मंदिर तक पंहुच सके | मुख्य देवालय में उतराभिमुख भव्य मूर्ति केवाय
माता की है | मंदिर स्थापना के 713 वर्ष पश्चात अर्थात वि,सं, 1768
(1712ई.)
में जोधपुर के महाराजा अजीतसिंह द्धारा माँ भवानी की मूर्ति प्रतिष्ठापित की गई,
जो वाम पाश्व्र में अवस्थित है |
महाराजा
अजीतसिंह, जोधपुर के संदर्भ में लोक मान्यता है की जब केवाय माता को इत्र् का
अर्पण करने के लिये महाराजा अजीतसिंह ने अपने आदमियों को किनसरिया भेजा, तो वे
सांयकाल के समय वहां पंहुचे, तब उस मंदिर का सेवग (पुजारी) मंदिर से नीचे उतर चूका
था | जब उसे वह इत्र् दिया गया, तो उसने उक्त इत्र् अपने सिरे में लगाकर यह कहकर
पुन: लौटा दिया की उसे देवी को अर्पित कर दिया गया है
| आदमियों ने इस हरकत की शिकायत महाराजा से की, तब वे स्वयं
किनसरिया पहुचें | वहां उन्होंने पुजारी से सवाल-जवाब किये, परन्तु पुजारी ने उदार
मन से यही कहा की इत्र् माँ को ही अर्पित
किया है | जब इसकी जांच की गई तो मंदिर के गर्भग्रह से उसी इत्र् की महक आई | इस
पर महाराजा ने गलत सुचना देने वाले का सिर कलम करवाने का आदेश दिया, तो पुजारी ने
कहा की इसे यह सजा मत दीजिये |
इसने जेसा
देखा, वेसा कह दिया | हम तो माँ के चरण सेवग है | अपने सेवग की लाज रखना तो उसी के
हाथ में है | मैने माँ को अर्पित कर इत्र् अपने सिर लगाया | उस माँ ने क्रपा
स्वीकार कर मेरा मान बढ़ाया और आपके हाथों दंडित होने से बचाया है | यह सब केवाय
माता की क्रपा है | उलेखनीय है की माँ के इस चमत्कारी रूप को देख कर महाराजा अजीतसिंह
ने उसी स्थान के वाम पाश्र्व में माँ भवानी की मूर्ति प्रतिष्ठापित की | केवाय
माता के दाहिनी तरफ राजभवन की दक्षिण-पूर्व
दीवार के पास क्रमश: काला माता व नवदुर्गा की मूर्तियाँ है | प्रचलित
मान्यताओं के आधार पर इन्हें चौसठ योगिनी एवं बावन भेरव के रूप में भी माना जाता
है | भवानी के बाई तरफ की मूर्ति को चारभुजा के रूप में पूजा जाता है | मुख्य
मंदिर के द्धार के बाहार दो भेरव प्रतिमाएं जो काला भेरव के नाम से प्रतिष्ठीत है
|
मुख्य
मंदिर के चारों और काफी खुला परीसर है एवं उसके ठीक सामने विशाल तिबारा है, जिसका
निर्माण कार्य महाराजा अजीतसिंह के समय में हुआ था | उसके पशिचम दिशा में मंदिर की
मुख्य पोल स्थित है, जिसका मुख्य द्धार उतर दिशा में है | इस पोल में हिंगलाज माता
की प्रतिमा है | किनसरिया गावं में बवाल का पहाड़, जो की बबायचा कहलाता है, जो कोस लम्बा
है, बवाल और बायचा के नाम से यह मिसल मशहुर रही है |
माँ भवानी
के मंदिर के अलावा पहाड के पशिचमी दिशा में पुराना भेरव मंदिर है, जिसे अंटलंगा
भेरू कहते है | भक्तजन हर रविवार व पूर्णेमा को भेरूजी के दर्शनारथ एवं मनोकामना
पूर्ति के लिये यहा आते है | पशिचम-दक्षिण
की पहाड़ी छताकडया के नाम से विख्यात है, जहाँ नाग बाबा ने समाधि ली थी |
गौरतलब है
की मंदिर में स्थित केवाय माता की पूजा-अर्चना के लिये वि. सं. 1622 में सेवग को दहिया राजकुमारी के अनुरोध पर लाडनू
से लाया गया था | अत: तब से सेवग इस माता के पुजारी रहे है | प्रथम सेवग के रूप
में सोलालजी सेवग पुजारी नियुक्त हुए थे |
किनसरिया के
आस-पास बसे गाँवों के लोग और केवाय माता को अपनी कुलदेवी के रूप में स्वीकार करने
वाले विशेष मांगलिक अवसरों एवं उत्सवों में शक्ति एवं भक्ति की देवी केवाय माता की
पूजा-अर्चना के प्रतिफलस्वरूप प्रसाद और भेंट चढाते है | मंदिर के आस-पास बसे लोग
दूध-दही एवं मक्खन से घर्त बनाकर उसकी भेंट चढाते है | जिससे देवी की क्रपा उन पर
सदा बनी रहे | आस-पास में जो कुंवे है उन पर जो अनाज होता है पांच सेर आनाज माता क
नाम से अलग कर देते है | होली दीवाली भक्तजन माँ भवानी के मंदिर में मनाते है |
मंदिर परिसर
में प्रात: एव: संध्या की पूजा-अर्चना का समय व कार्यक्रम निश्चित है, जो ऋतू
परिवर्तन के साथ बदलता रहता है | माँ भवानी का उत्थापन व जल स्नान प्रात: 5
बजे
अभिषेक के रूप में कराया जाता है | श्रंगार करके मंगल आरती प्रात: 7 बजे
के जाती है औ राजभोग 11 बजे लगाते है | नवरात्रि पर्वों में
भक्त अखंड, निराहार अथवा एक वक्त आहार लेकर विधिपूर्वक दुर्गोपासना स्वयं अथवा
विद्वान ब्रहामन द्धारा करवाते है |
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