अभी तक आपने सुना होगा की ताज महल असली में राजपूतों का बनाया तेजो महालय शिव मंदिर है पर क्या आप जानते है की दिल्ली का लाल किला ...
शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले पृथ्वीराज चौहान द्वारा
बनवाया हुवा लाल कोट है !
क्या कभी किसी ने सोचा है की इतिहास के नाम पर हम झूठ क्यों
पढ़ रहे है ?? सारे प्रमाण होते हुए भी झूठ को सच क्यों बनाया जा रहा है ??
हम हिंदुओं की बुद्धि की आज ऐसी दशा हो गयी है की अगर एक
आदमी की पीठ मे खंजर मार कर हत्या कर दी गयी हो और उसको आत्महत्या घोषित कर दिया
जाए तो कोई भी ये भी सोचने का प्रयास नही करेगा की कोई आदमी खुद की पीठ मे खंजर
कैसे मार सकता है....यही हाल है हम सब का की सच देख कर भी झूठ को सच माना फ़ितरत
बना ली है हमने.....
दिल्ली का लाल किला शाहजहाँ से भी कई शताब्दी पहले प्रथवीराज चौहान द्वारा बनवाया हुवा लाल कोट है
जिसको
शाहजहाँ ने बहुत तोड़ -फोड़ करके कई बदलाव किये है ताकि वो उसके द्वारा बनाया
साबित हो सके..लेकिन सच सामने आ ही जाता है.
इसके पूरे साक्ष्या प्रथवीराज
रासो से मिलते है
शाहजहाँ से २५० वर्ष पहले
१३९८ मे तैमूर लंग ने पुरानी दिल्ली का उल्लेख करा है (जो की शाहजहाँ द्वारा बसाई
बताई जाती है)
सुवर (वराह) के मूह वेल चार
नल अभी भी लाल किले के एक खास महल मे लगे है. क्या ये शाहजहाँ के इस्लाम का प्रतीक
चिन्ह है या हमारे हिंदुत्व के प्रमाण ??
किले के एक द्वार पर बाहर
हाथी की मूर्ति अंकित है राजपूत राजा लोग गजो( हाथियों ) के प्रति अपने प्रेम के
लिए विख्यात थे ( इस्लाम मूर्ति का विरोध करता है)
दीवाने खास मे केसर कुंड नाम
से कुंड बना है जिसके फर्श पर हिंदुओं मे पूज्य कमल पुष्प अंकित है, केसर कुंड हिंदू शब्दावली है
जो की हमारे राजाओ द्वारा केसर जल से भरे स्नान कुंड के लिए प्रयुक्त होती रही है
मुस्लिमों के प्रिय गुंबद या
मीनार का कोई भी अस्तित्वा नही है दीवानेकहास और दीवाने आम मे.
दीवानेकहास के ही निकट राज की
न्याय तुला अंकित है , अपनी
प्रजा मे से ९९% भाग को नीच समझने वाला मुगल कभी भी न्याय तुला की कल्पना भी नही
कर सकता, ब्राह्मानो
द्वारा उपदेषित राजपूत राजाओ की न्याय तुला चित्र से प्रेरणा लेकर न्याय करना
हमारे इतिहास मे प्रसीध है
दीवाने ख़ास और दीवाने आम की
मंडप शैली पूरी तरह से 984 के अंबर के भीतरी महल (आमेर--पुराना जयपुर) से मिलती है जो की
राजपूताना शैली मे बना हुवा है
लाल किले से कुछ ही गज की
दूरी पर बने देवालय जिनमे से एक लाल जैन मंदिर और दूसरा गौरीशंकार मंदिर दोनो ही
गैर मुस्लिम है जो की शाहजहाँ से कई शताब्दी पहले राजपूत राजाओं ने बनवाए हुए है.
लाल किले का मुख्या बाजार
चाँदनी चौक केवल हिंदुओं से घिरा हुवा है, समस्त पुरानी दिल्ली मे
अधिकतर आबादी हिंदुओं की ही है, सनलिष्ट और घूमाओदार शैली के मकान भी हिंदू शैली के ही है
..क्या शाहजहा जैसा मुस्लिम व्यक्ति अपने किले के आसपास अरबी, फ़ारसी, तुर्क, अफ़गानी के बजाय हम हिंदुओं
के लिए मकान बनवा कर हमको अपने पास बसाता ???
एक भी इस्लामी शिलालेख मे लाल
किले का वर्णन नही है
""गर फ़िरदौस बरुरुए ज़मीं अस्त, हमीं अस्ता, हमीं अस्ता, हमीं
अस्ता""--अर्थात इस धरती पे अगर कहीं स्वर्ग है तो यही है, यही है, यही है....इस अनाम शिलालेख को
कभी भी किसी भवन का निर्मांकर्ता नही लिखवा सकता .. और ना ही ये किसी के
निर्मांकर्ता होने का सबूत देता है
इसके अलावा अनेकों ऐसे प्रमाण है जो की इसके लाल कोट होने
का प्रमाण देते है, और ऐसे
ही हिंदू राजाओ के सारे प्रमाण नष्ट करके हिंदुओं का नाम ही इतिहास से हटा दिया
गया है, अगर
हिंदू नाम आता है तो केवल नष्ट होने वाले शिकार के रूप मे......ताकि हम हमेशा ही
अहिंसा और शांति का पाठ पढ़ कर इस झूठे इतिहास से प्रेरणा ले सके...सही है ना???..
लेकिन कब तक अपने धर्म को ख़तम करने वालो की पूजा करते
रहोगे और खुद के सम्मान को बचाने वाले महान हिंदू शासकों के नाम भुलाते रहोगे..ऐसे
ही....?
जागो जागो और इतिहास की
सच्चाई को जानो ...मुस्लिम शाशको ने ज्यादातर लुट - पाट,तोड़ फोड़ करके हमारे मंदिरों
और महलों को परिवर्तित किया है ,बाबरी मस्जिद ( जिसे देश भक्त हिन्दू वीरो ने गुलामी के
प्रतीक को नेस्तनाबूद कर दिया) धार की भोजशाला जैसे कितने प्रमाण आज भी मौजूद है
जो चिल्ला -चिल्ला कर हमसे कह रहे है की देखो इतिहास की सच्चाई
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