माधोदास लक्ष्मणदास वैरागी ( हिन्दू योद्धा )
ये वो हिन्दू योद्धा है जिसने पंजाब, हरियाणा, कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से मुसलमानों के आतंक का वो दमन किया जिससे कि औरँगजेब की रूह तक कांप उठी थी । कहते हैं कि माधोदास जी जिस भी प्रदेश को इस्लाममुक्त करते थे वे वहाँ पर कोई छोटी से छोटी मज़ार तक तोड़ डालते थे और मुसलमानों की कब्रे उखाड़कर लाशों को कुत्तों और गिद्धों के आगे डाल देते थे । यदि आप माधोदास जी की जीवन चरित्र पढ़कर देखें तो आपको पता लगेगा कि मात्र 5 सालों के अंदर माधोदास ने वो करके दिखा दिया जो सिखों के 10 गुरु मिलकर भी 500 सालों में भी न कर पाए और पोथियाँ और गद्दियां संभालने में समय बर्बाद करते रहे ।
माधोदास वैरागी जी भरद्वाज गोत्र के पहाड़ी राजपूत थे । सिखों का 10 गुरु गोबिंद हारकर और हताश होकर पूरी तरह निराश होकर नान्देड़ में निकल गया था और उसे वहाँ किसी से वैरागी के बारे में पता लगा तो वैरागी को अपने बेटों के बलिदान गाथा कह सुनाई थी और मुसलमानों द्वारा फैलाए अत्याचार के बारे में विस्तार से बताया । जिसे सुनकर वैरागी का खून खौल उठा और पूरे उत्तर भारत को इस्लाम मुक्त करने का संकल्प लेकर सेना का गठन करने शुरू किया । उनकी सेना में हिन्दू योद्धाओं के साथ साथ गोबिन्द के खालसा भी भर्ती हुए और बहुत अल्प समय में ही सेनाओं ने बहुत से प्रदेश जैसे फरुखाबाद, समाना, नरवाना, सहारनपुर, हरिद्वार आदि से मुसलमानों की कमर तोड़ डाली और सिखों को बहुत से इलाके सौंप दिए । वैरागी की इतनी उपलब्धियों को से पूरा सिख समाज अचंभित था की जो काम सवा लाख से लड़ने वाला 10 वा गुरु न कर सका और न ही मुग़लों के खिलाफ कोई निर्णायक युद्ध जीत पाया वहीं ये हिन्दू वैरागी राजपूत इतने कम समय में कैसे एक के बाद एक जीतता चला गया ? वैरागी की सफलता के कारण ही उसके बढ़ते कद से मुसलमान बादशाह तो परेशान थे ही लेकिन साथ में खालसाओं के माथे पर भी बल पढ़ने लगे क्योंकि ये तथाकथित खालसा अपने से अधिक किसी को शूरवीर मानने तक को तैयार न थे सो गोबिन्द की पत्नी सुंदरी और साहिब कौर दिवान को इस बात से विशेष जलन भी थी कि आखिर एक हिन्दू वैरागी ने कैसे उनके शाहिद हुए बेटों के बदला सफलतापूर्वक ले लिया और वहीं खालसा नपुंसक बने रहे और कोई निर्णायक कारवाही मुसलमानों के खिलाफ न कर सके । इनकी इसी जलन का पूरा पूरा फायदा दिल्ली के बादशाह फरुखसियर ने उठाया, तब सुंदरी और साहिब कौर के कान भरने शुरू किए और इन दोनों ने नीचता दिखाते हुए वैरागी के सामने अमृत चखकर सिख बनने की शर्त रख दी, लेकिन वैरागी अपने पूर्वजों के धर्म में ही मरना चाहता था तो उसने अस्वीकार कर दिया और पत्र में उनको लिखकर भेज की जब वह अपने धर्म में रहकर ही अपने शस्त्रों की शक्ति से सफलतापूर्वक इतने प्रदेश मुसलमानों से मुक्त कर पाया है तो वह अपना धर्म क्यों और किस लिए बदले ? और दूसरी बात गोबिन्द जब खुद उससे सहायता मांगने आये थे तो भला ये कैसे हो सकता है की वह उनकी सहायता भी करे और उनकी गुलामी भी करे ? ये दोनों काम तो एक साथ हो नहीं सकते थे क्योंकि जो खुद ही किसी से सहायता मांगने आया हो व्व किस अधिकार के बल पर अपनी सहायता करने वाले को अपने अधीन कर सकता है ? इन्हीं बातों को लेकर साहिब कौर और सुंदरी को वैरागी से जलन हुई थी और दूसरा कारण ये भी था कि वैरागी का कद गोबिन्द से इतना ऊंचा हो गया था जिसके कारण उसे 11 वाँ गुरु तक लोगों ने कहना शुरू कर दिया । इन सबके कारण इन दोनों औरतों ने हिन्दू वैरागी के सारे उपकार एक क्षण में ही भूला दिए और गद्दारी एहसानफरामोशी करते हुए अपनी खालसा सेना जो कि वैरागी के साथ मिलकर मुसलमानों से लड़ रही थी उसे वैरागी से ये कहकर अलग करवा दिया कि "इसने गुरु द्रोह किया है " और सारी सेना जाकर मुसलमानों के साथ वैरागी के खिलाफ मिल गयी । जिससे वैरागी की ताकत कम हो गयी और वह पकड़ा गया जिससे कि उसका बलिदान हुआ । ये सब हुआ इसलिए क्योंकि खालसा अपनी संकीर्ण बुद्धि के कारण हिन्दू योद्धाओं को अपने से बढ़कर नहीं देख सकता था । बने बनाये सारे संगठन पर इन दोनों औरतों की गद्दारी ने पानी फेर दिया ।
क्योंकि सिखों के पास गोबिन्द से लेकर रणजीत सिंह की उपलब्धियों में दिखने लायक कुछ है ही नहीं इसलिए इन झूठे और मक्कार सिख इतिहासकारों ने हिंदुओं के सारे उपकार भूलते हुए हिन्दू माधोदास वैरागी का सिखिकरन करने का सोचा क्योंकि माधोदास की उपलब्धियों के सामने 10 सिख गुरुओं, जस्सा सिंह रामगढ़िया, बाबा दीप सिंह से लेकर रणजीत सिंह की उपलब्धियाँ मिलाकर भी चींटी के समान थीं इसलिए सिखों को हिंदुओं से बड़ा बताने के लिए इन्होंने माधोदास वैरागी को नकली नाम "बाबा बंदा सिंह बहादुर" दिया और गोबिन्द को उससे बड़ा दिखाया गया ( सोचने वाली बात ये है कि गोबिन्द में यदि इतनी क्षमता थी तो वह खुद क्यों कोई युद्ध नहीं जीत पाया और वैरागी की तरह सफल हो पाया ? ) 1960 से पहले ये सिख वैरागी से नफरत करते रहे लेकिन जब इनके पास सिख इतिहास में दिखने को कुछ मिला नहीं तो इन्होंने हिन्दू वैरागी को ही सिख बना डाला, इन सिखों की प्रवृति सदा से ये रही है कि ये अपने से अधिक किसी को नही मानते । और हिंदुओं को तो ये अपने पैर की धूल तक समझते रहे हैं ।
यदि कोई पूछे कि गोबिन्द वैरागी जितना सफल क्यों नहीं हो पाया ? और क्या कारण था कि वैरागी कम समय में ही सफल होता चला गया ? तो उत्तर ये है कि युद्ध के लिए वीरता के साथ साथ कूटनीति और रणनीति की आवश्यक होती है उससे भी अधिक आपको अपने शत्रु के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए । गोबिन्द ने अपनी सेना में पठानों तक कि भर्ती कर रखी थी जबकि वैरागी ने चुन चुनकर एक एक मुसलमान को सेना से बाहर किया और तड़पाकर मार डाला क्योंकि वे जानते थे कि मुसलमान कभी भी अपने मजहब के लोगों के खिलाफ नहीं जाता, वैरागी ने शत्रुओं की चाल समझने के लिए बहुत से गुप्तचर उनमें छोड़े हुए थे जो पल पल का समाचार देते रहे लेकिन गोबिन्द ने ऐसा कुछ न किया था, गोबिन्द ने सोचा था कि एक सिख सवा लाख से लड़ सकता है और बहादुरी ही सबकुछ होती है परन्तु वैरागी जानता था कि सवा लाख वाली हवाई बातों से कुछ न होगा युद्ध के लिए आवश्यक सामग्री भी चाहिए, इसलिए वैरागी ने अपना अधिक ध्यान मुस्लिम बादशाहों के धन के साथ साथ उनके शस्त्रों और शस्त्रागार लूटने पर दिया । बहुत सी बातों से गोबिन्द और वैरागी के बीच व्यापर अंतर को समझा जा सकता है ।